बुधवार, 22 अप्रैल 2009

व्यकित मैं हूँ तुम हो छाया सत्य प्रति हो तुम
निर्मिर्ती निर्माण कर्ता अनुकृति हो तुम
सिन्धु तुम हो सरिता मैं हूँ अनुमति हो तुम अ
असामाजिक कृत्यकर्ता चर्चिताहो तुम
प्रेम परिचय नाम मेरा परिचिता हो तुम
महा अगिन मैं हुताशन विकटता हो तुम
सन्निकट मैं प्रेम हर्दया निकटता हो tum

तुम में ही आगे ...........

लक्ष्मी हो अम्बिका हो भारती हो तुम

मैं हूँ एकक तुम हो निजता मैं स्वम् हूँ तुम

अंत मैं हूँ तुम हो सीमा अतिपरम हो तुम

रंग तुम हो चित्र मैं हूँ चित्रावली हो तुम

छंद तुम हो मुक्तक हूँ मैदोहावली हो तुम

पुष्प तुम हो वृंत मैं हूँ वर्तिका हो तुम

प्रष्ठ मैं हूँ तुम कहानी पत्रयिकाहो तुम

मैं हूँ जीवन प्राण तुम हो प्रानदा हो तुम

दुग्ध सलिला पयोवछा शारदा हो तुम

मैं प्रभात हूँ तुम हो ऊषा अरुणिमा हो तुम

मैं हूँ मापक उन्नति का प्रतिविमा हो तुम

मैं प्रयासी जीव नन्हा उन्नति हो तुम

मैं प्रवाहित प्रेम सरिता अनुगति हो तुम

ताल मैं हूँ राग तुम हो संगतिहो तुम

मैं पथिक सन्मार्ग गामी sadamti

सोमवार, 20 अप्रैल 2009

किटकिटआहटहिस्त्र वाणी गर्जना हो तुम

काव्यधारा प्रस्फुटन मैं प्रेरणा हो तुम

काव्य जीवन तुमको अर्पित अर्पणा हो तुम

दिव्या मैं हूँ तेज तुम हो आरती हो तुम

मै तुम्हारी स्रष्टि हूँ यदि सर्जना हो तुम
बहु प्रतीछित क्रांति छण मै परिणति हो तुम
रक्त का संचार मै हूँ ह्र्दगतिहो तुम
रूप मै हु तुम हो शोभा पावना हो तुम निविर्चारित भावमै हूँ भावना हो तुम
सत्य की अभिव्यकित मै हूँ सत्यता हो तुम
मैं शिशु हूँ जननी हो तुम परिपक्वता हो तुम
रूप मैं हु कांति तुम हो निर्मला हो तुम
पुत्र मैं हूँ प्रेम सलिला वत्सला हो तुम
मैं हूँ कान्हा तुम हो पूरक राधिका हो तुम
साधना मैं सिद्धि तुम हो साधिका हो तुम
रयोद्ररूपा अगिन नयना चंडिका हो तुम
रुधिर अधराकलिका शिर मंडिता हो तुम
मैं व्यथित भवभीत हूँ भय मर्दना हो तुम

तुम में ही आगे .........

शब्द मैहूँ काव्य तुम हो लेखनी हो तुम
नारियो में श्रे स्ठ्तंम हो पद्रिमनी हो तुम
वाद्य मै हूँ राग तुम हो रागिनी हो तुम
देह से दूरी भले ह्रयाबसिनी हो तुम
पूर्णिमा की प्रेम वरनी चांदनी हो तुम
प्रेमसंध्या तप्तसीमा यामिनी हो तुम
पुत्रव्रत व्यवहृत शिशु मै प्रेयसी हो तुम
मुर्तरूपा सुन्दरी सी उर्वसी हो तुम
पुष्प मै हूँ तुम सुगन्धित चंदना हो तुम
मै कदाचित हूँ पिता तो नंदना हो तुम
वृछ मै हूँ तुम लता हो वल्लरी हो तुम
प्रेम पुष्पों से घिरी हो पल्लवी हो तुम
चित्र मै हूँ रंग तुम हो तूलिका हो तुम
जीवन शक्ति तुम्ही हो प्रेमिका हो तुम
प्रेम धन अर्जन करूँ अर्जना हो तुम

शनिवार, 18 अप्रैल 2009

राज की तुम/निकल आई है दुम.....

ये कविता मेरी लिखी नही है मुझे मेरे राज ने लिखकर दिया था की ये मैंने तुम्हारे लिए लिखी है अब तो वो किसी और का है फ़िर भी मेरे लिए तो अभी भी वो वही है ,

तुम ..........
तुम हमारी बंदना हो अर्चना हो तुम
प्यार के प्यासे हर्दय की साधना हो तुम
मै कवि हूँ तुम हो कविता कल्पना हो तुम
तुम रंगोली रंगपूरित अल्पना हो तुम
मै मरुस्थल तुम हो बरसा सींचना हो तुम
द्रस्य मै हूँ नाट्य तुम हो मंचना हो तुम
गीत मेरे गेव यदि हो गायिका हो तुम
मात्र रूपा प्रेयसी हो नायिका हो तुम
श्यामवर्णी मेघ मै सोदामिनी हो तुम
तडित चपला चंचला सी कामिनी हो तुम

नई उमंगो का महीना अप्रैल

रात ढल गई है समूची
और मै टहलते हुए सोचती हु
जैसे मेरे चहु ओर की दीवार
छण भर को ढह गई है
अकेली हु मै
मै नजरे ऊपर उठाती हु देखने को
तारो की चमक और मुस्कुराहट
लेकिन शनि,तारे तक नही मुस्कुराते
हल्की भीनी हवा
धरती के कण कण में धीमे से वहती है
और धुधला देती है सितारों को
और चाँद को ढक लेती है
मै ख़ुद में लोट आती हु
उसमे जो मेरे भीतर है
उसमे जो शायद मै नही हूँ उस धुधलके में
ख़ुद तक पहुचने के लिए बिलखती
क्या यही है सब कुछ
या इसके प्रे भी संसार है
सितारे चाँद ये रात मेरा कमरा मेरी दीवारे
और मै मेरा अकेलापन और मै ............